बरसात के ही मौसम में बादल काले क्यों होते हैं ?
बरसात के मौसम में बादल काले इसलिए होते हैं क्योंकि जब प्रकाश की किरणे किसी भी
वस्तु पर गिरती है तो वह वस्तु प्रकाश की कुछ किरणों को परावर्तित कर देती है तथा
शेष को अवशोषित कर लेती है यदि कोई वस्तु चमकीली है तो किरणे ज्यादा परावर्तित
होंगी और यदि काली है तो किरणे ज्यादा अवशोषित होगी यही नियम वर्षा के बादलों पर
भी लागू होता है इन बादलों में पानी की असंख्य बूंदे होती है। यह बूंदे सूरज की अधिक
से अधिक किरणे अवशोषित कर लेती है इससे पृथ्वी तक बहुत ही कम किरणें पहुंचने पर चारों
ओर अंधेरा हो जाता है धूप नहीं निकल पाती है कभी कभी बरसाती बादल गहरे काले होते
हैं और कभी कभी कम गहरे होते हैं बादलों का रंग पानी की बूंदों की संख्या पर
निर्भर करता है बादलों का काला होना एक और कारण हो सकता है वह है वायु प्रदूषण
बादलों का काला होने में इसका मुख्य कारण है क्योंकि आज पूरी दुनिया में वायु
प्रदूषण एक गंभीर समस्या है वायु प्रदूषण अधिक होने के कारण बहुत अधिक मात्रा में खराब
वायु वातावरण में स्थित हो रहे हैं इससे बहुत सी गंभीर समस्याएं पैदा हो रही है
जैसे अस्थमा की बीमारी और सांस लेने में परेशानी और तो और वायु प्रदूषण होने से बादलों
का पानी भी खराब हो जाता है क्योंकि उसमें कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड
मिल जाता है जिससे पानी का गुणवत्ता जहरीला हो जाता है यही कारण है कि आज ताजमहल
भी बहुत तेजी से पीला हो रहा है क्योंकि पास में ही एक रिफाइन कंपनी मथुरा के पास
है जिससे वह रिफाइन तेल निकाल तो लेती है पर उस निकला हुआ दूंगा वहीं छोड़ा जाता
है जिससे वह दुआ बादल में मिलकर जहरीला बना देता है पानी को जिसके कारण आज ताजमहल
बहुत तेजी से पीला हो रहा है
वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा ज्यादा होना=जैसा कि हम सभी लोग
जानते हैं कि हम लोग ऑक्सीजन को अपने शरीर के अंदर लेते हैं और अंडा कार्बन
डाइऑक्साइड को बाहर छोड़ते हैं और यह तो हमारे हुए कोई शरीर की बात पर लेकिन इन
कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में और भी कई तरह के तरीके से मौजूद है जैसे जब गाड़ी
स्टार्ट होती तो उसमें से निकलता है वह भी एक तरह का कारण होता है आज वर्तमान समय
में गाड़ियां बहुत चल रही है जिससे दूंगा भी अधिक निकल रहा है इसके कारण वायु
प्रदूषण भी बहुत ज्यादा हो रहा है यह विशेष बात है ध्यान में रखने का।
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ग्लोबल वार्मिग - धरती जीवनदायिनी है । चंद्र - मंगल आदि ग्रहों पर जीवन नहीं
है । इसका कारण है - पर्यावरण या वातावरण धरती पर जलवायु ऐसी है कि इस पर वनस्पति
पैदा हो सकी , जल के स्रोत बन सके और जीव पैदा हो सका । यह जीवन - लीला तभी चल
सकती है जबकि यहाँ का प्राकृतिक वातावरण निर्दोष बना रह सके ।
प्राकृतिक असंतुलन - दुर्भाग्य से आज पर्यावरण का यह संतुलन टूट गया है । जीवन
जीने के लिए जितना ताप चाहिए । जितना जल चाहिए , जितने वृक्ष - जंगल चाहिए , जितनी
बर्फ , जितने ग्लेशियर और नदियाँ चाहिए , उन सबमें खलल पड़ गया है । धरती पर जितने
हिमखंड चाहिए और जितना समुद्री जल चाहिए , उसका संतुलन बिगड़ गया है । चौंकाने
वाली बात यह है कि आज हर रोज एकड़ों जमीन समुद्र में समाती जा रही है । उत्तरी तथा
दक्षिणी ध्रुव के बर्फीले पहाड़ पिघल - पिघल कर समुद्र में मिलते जा रहे हैं ।
इसके कारण समुद्र का जल बढ़ता जा रहा है । भय है कि आने वाले 30 - 40 सालों में
मद्रारा , मुंबई आदि के समुद्र - तट अपने किनारे बसे नगरों को लील जाएँगे । जैसे
भगवान कृष्ण की द्वारिका नगरी समुद्र में समा गई थी , वैसे ही एक दिन सारी धरती
जलमग्न हो जाएगी । यह संसार जल - प्रलय में डूब जाएगा । जो जल जीवन देता है वही एक
दिन जीवन को नष्ट कर देगा ।
उपाय -
धरती को ताप से बचाने का एक ही उपाय है - अपने पापों का प्रायश्चित
करना । जिन - जिन कारणों से हमने ताप बढ़ाया है , कष्ट उठाकर भी उन कारणों को
बढ़ने से रोकना । पौधे लगाना , हरियाली उगाना । मशीनी जीवन की बजाय प्रकृति की गोद
में लौटना ।
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